गुल मो​हसिन की खुद्दारी, फेफड़े खराब, उखड़ती सांस, चला रहे ई-रिक्शा
गुल मो​हसिन

रूड़की | अल्लाह गुल मोहसिन को ता-क़यामत सलामत रखे, जो बीमारी के बावजूद किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाए खुद्दारी से मेहनत कर पैसा कमा रहे हैं। इनकी सांस बस एक ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे अटकी हुई है। जो यह अपने ई—रिक्शा पर 24 घंटे लगाये रहते हैं। इनके दोनों फेफड़े खराब हैं, लेकिन अपने नाते—रिश्तेदार या परिवार पर बोझ बनने की जगह इन्होंने खुद मेहनत के दम पर पैसा कमाने का फैसला लिया है।

कहते हैं जिंदगी हर कदम पर हमारा इम्तिहान लेती है। मुश्किल वक्त आने पर बहुत से टूट जाते हैं और किसी सहारे की तलाश शुरू कर देत हैं। बावजूद इसके कुछ ऐसे खुद्दार होते हैं, जो किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाए संघर्ष का रास्ता अपना लेते हैं। ऐसे ही संघर्षशील लोगों में शामिल हैं रुड़की के रहने वाले गुल मोहसिन। 62 साल के गुल मोहसिन घर चलाने के साथ-साथ अपनी जिंदगी का पहिया भी चलाने को मजबूर हैं।

आपको रूड़की शहर में ई-रिक्शाओं का एक जाल सा दिखाई देगा। इनमें से एक रिक्शा गुल भी चलाते हैं। लोग जब ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई-रिक्शा चलाते गुल मोहसिन को देखते हैं तो चौंक जाया करते हैं।

रोजगार के लिए ई-रिक्शा, उखड़ती सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर

गुल मोहिसिन ने अपनी जिंदगी की जद्दोजहद के बारे में मीडिया कर्मियों से पूछे जाने पर बात भी की। बातचीत में पता चला कि उनके दोनों फेफड़े खराब हैं। जिस कारण गुल मोहसिन के लिए दो वक्त की रोटी के साथ-साथ अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम भी करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि वह किसी पर बोझ नहीं बन सकते। जिंदा रहने के लिए उन्हें पैसे कमाने होंगे। जिस कारण अपनी उखड़ती सांसों को बचाने के लिए हर समय ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर चलना उनकी मजबूरी है।

अलबत्ता शहर में हर कोई अब गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनतकशी का कायल है। यह अलग बात है कि आज की तारीख तक किसी सरकारी और गैर सरकारी संस्था ने इनकी मदद करने की ज़हमत नहीं उठाई है।

15 साल पहले बदल गई जिंदगी

बताना चाहेंगे कि गुल मोहसिन रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब के निवासी हैं। आज से 15 साल पहले उनकी जिंदगी में सब ठीक चल रहा था। बच्चों की भी शादी कर चुके थे, लेकिन साल 2009 उनकी जिंदगी में परेशानियां आ गई। गुल मोहसिन बतातें हैं कि वह एक टेलर थे। कपड़े सिलकर परिवार का गुजारा होता था। इसी कमाई से बच्चों की शादी की थी। साल 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आया। तब जो भी पैसा था सब ईलाज में खत्म हो गया। उसके बाद डॉक्टर ने उन्हें आराम करने को बोल दिया।

मोहसिन बताते हैं कि 11 साल बाद 2020 में कोरोना के दौरान उनके दोनों फेफड़ें भी जवाब दे गए। जिसके कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर पैदल चलना भी कठिन हो गया। तब डॉक्टरों ने बोल दिया कि उनकी जब तक जिंदगी है, सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी। अब डॉक्टर की सलाह और जिंदा रहने के लिए 2 साल पहले लोन लेकर ई-रिक्शा का हैंडल थाम लिया। अब उन्हें ई-रिक्शा की किश्त, ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने की रकम और घर के खर्चे के लिए रोजाना पैसे कमाने पड़ते हैं। तीनों जरूरतें पूरा करना ही उनकी जिंदगी का अहम रूटीन बन चुका है।

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