80 से 90 के दशक के बीच की बात है। हम तीन भाई माता-पिता के साथ देश की राजधानी दिल्ली रहा करते थे। माता-पिता दोनों सरकारी सेवा (शिक्षा विभाग) में थे।
यह वह दौर था जब आज की तरह व्यर्थ की भाग-दौड़ और आपधापी नहीं थी। दिल्ली जैसे महानगर में भी लोगों के बीच एक आत्मीय लगाव हुआ करता था। उत्तराखंड जैसे राज्य में तो स्थिति और बेहतर थी।
आज की तरह आधुनिक सुविधाएं भले ही नहीं थी, लेकिन उत्तराखंड के तमाम पर्वतीय जनपद किसी स्वर्ग से कम नहीं थे।
All Photo credit- unsplash.com
चलिए शुरूआत दिल्ली से ही करता हूं। 80 का दशक वह दौर था जब पंजाब में उग्रवाद खूब फल-फूल रहा था। भिंडरवाले का उदय हो चुका था। देशभर में चर्चा का केंद्र ही आतंकवाद था।
तब आज की तरह इंटरनेट व सोशल मीडिया नहीं था। सूचनाओं के लिए दूरदर्शन अथवा समाचार पत्र हुआ करते थे। रोजाना समाचार पत्रों को पढ़ने के बाद देश के हालातों पर चर्चा हुआ करती थी।
1996 के बाद पारिवारिक कारणों से दिल्ली छोड़ उत्तराखंड के अल्मोड़ा का रूख किया। यहां की प्राकृतिक आबोहवा और खूबसूरती ने अभिभूत कर दिया था। कहां दिल्ली जैसा महानगर और कहां शांत देवों की नगरी अल्मोड़ा।
अल्मोड़ा में तब अधिकांश लोग सरकारी नौकरीपेशा थे। करीब एक समान आय थी। आज की तरह प्राइवेट जॉब का दौर और आय में जमीन आसमान का अंतर नहीं हुआ करता था। अधिकांश लोगों को सुबह 10 बजे कार्यालय जाना होता था।
तब चाहे दिल्ली जैसा महानगर हो या उत्तराखंड का अल्मोड़ा। हर घर टेलीफोन और कलर टीवी भी नहीं हुआ करते थे। अमूमन मोहल्ले में कुछ लोगों के घर टीवी, फोन आदि होते थे। उनके नंबर आस-पड़ोस में बंट जाते थे।
तब टीवी में 'रामायण', 'महाभारत' जैसे सीरियल हिट थे। इसके अलावा कुछ चर्चित सीरियलों में 'हम लोग', 'विक्रम बेताल', 'शक्तिमान', 'जैंट रॉर्बट' आदि हुआ करते थे। जिन्हें देखने घरों में मजमा लगता था।