✒️ कत्यूरी राज माता जिया रानी का संक्षिप्त परिचय
✒️ कुवंर यश सिंह बंगारी का आलेख
न्यायकारी देवी, जिनको संपूर्ण उत्तराखंड में कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है, वह शक्ति का अवतार महारानी जियारानी हैं। उक्त आलेख में हम आपको महारानी जिया के संक्षिप्त इतिहास और शौर्य गाथा से अवगत कराने का प्रयास कर रहे हैं।
जिया रानी सिलोर पट्टी (खातिगढं) के राजा जयराज खाती और रानी पियुलों देवी की पुत्री थीं। अस्कोट पाली के सूर्य कत्युरवंशी पाल, रजवार, मनराल ओंर पाली पछाऊं, बंगारस्यु बंगारी, बिष्ट के अनुसार आदि इनके वंशजों में जाने जाते हैं।
न्यायकारी जिया महारानी, तुर्कों के हमले व रानीबाग
ईस्वी 12वीं शताब्दी में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था। हरिद्वार में तुर्कों के हमले लगातार जारी रहे। न सिर्फ हरिद्वार बल्कि कुमाऊं, गढ़वाल में भी तुर्कों के हमले होने लगे। राजा प्रीतमदेव (पृथ्वीपाल) कत्युर के राजा थे। उस काल में जिया महारानी प्रीतमदेव की दूसरी रानी थीं। मां जिया से उनके पुत्र धामदेव हुए, जबकि पृथ्वीपाल पहली रानी धर्मा (गंगावती) थी। जिया रानी को राजमाता का दर्जा मिला और आगे चलकर न्यायकारी जिया महारानी बनी। कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से राज्य का भाभर कार्य देखने के लिये वो अपने पुत्र के साथ चित्रशिला गोलाघाट (रानीबाग, हल्द्वानी) चली गयी। जहां उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग बनवाया। यहां जिया रानी काफी समय रहीं।
यह भी जानें –
✒️ शक्तिशाली कत्यूरी राजवंशीय प्रभाव संपूर्ण कुमाऊं-गढ़वाल में था। 550 से 9वीं शताब्दी तक उनकी राजधानी जोशीमठ, फिर कार्तिकेयपुर, बैराठ (वर्तमान में कत्यूर घाटी बागेश्वर व चौखुटिया) बनी। वे बडे़ शूरवीर थे। उस युग मे शिवालय, शक्तिमठ बने जो कि कत्यूरी शैली में निर्मित हैं। वे ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र शास्त्रों के भी संरक्षक थे।
✒️ वंश परम्परा की सूची लंबी है। कई पीढियों के बाद महारानी जिया के पुत्र धामदेव ने धामपुर ओर बैराठ में की जिम्मेदारी थी। शिवालिक तक राज्य सीमा थी और उनकी सैन्य शक्ती बहुत विशाल थी। लगभग 13 वीं शताब्दी के बाद धाम देव ने तुर्कां, मुगलों, पठानों, लुटेरे के छक्के छुडा़ दिए।
देव भूमि उत्तराखंड का स्वर्ण युग था कत्यूरी काल
✒️ आक्रान्ताओं तुर्की, मुगलों, पठानों से लड़ाई –
तुर्कों ने एक मुस्लिम सेना की टुकड़ी को पहाड़ी राज्यों पर हमला करने भेजा। जब यह सूचना राजा धाम देव को मिली तो उन्होंने इसका सामना करने के लिए कुमाऊं के कत्यूर क्षत्रिय वंशी की एक बड़ी सेना का गठन किया। तैमूर की सेना और कत्यूरियों वीरों के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में युद्ध हुआ। जिसमें मुस्लिम सेना की हार हुई। कत्यूरी वीरों ने गाजर और मूली की तरह तैमूर लुटेरे की सेना को काटा। इस विजय के बाद जिया सैनिक कुछ निश्चिन्त होकर विश्राम कर रहे थे। तभी वहां तैमूर की दूसरी अतिरिक्त सेना पहुंच गई। जिसने छल से सबका बंदी बना लिया। जब राजा धाम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो स्वयं सेना लेकर आये और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया और इस युद्ध में शक्तिशाली कत्यूरियों की विजय हुई।
✒️ प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद जिया रानी के पुत्र कत्यूरी चक्रवर्ती सम्राट धामदेव ने संरक्षक के रूप में न्यायकारी शासन भी किया था। मां जिया के शासन बहुत ही न्याय प्रिय, धर्म प्रिय था। जिसकी जयकार संपूर्ण भारतखंड में हुई।
✒️ वो स्वयं शासन के निर्णय लेती थीं। मां के लिए ‘जिया’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूर वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।
जिया रानी की गुफा के बारे में किवदंती
कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीदेव की पत्नी रानी जिया यहां चित्रेश्वर महादेव के मंदिर में दर्शन के लिये जाने से पूर्व स्नान कर रहीं थीं। तो उस समय एक दिवान उसी नदी के तट जो की मूल स्थान से काफ़ी दूर था अपनी सेना के साथ वहां से गुजर रहा था। जब मां जिया स्नान कर रहीं थीं तो उनके सर से कुछ केश टूटकर पानी में प्रवाहिट हो गये। जब वह दिवान नदी पार कर रहा था तो वह अपने घोडे़ में सवार था। बीच नदी के मध्य तभी अचानक घोडे़ का पैर उन बालों में उलझ गया और दिवान नदी में गिर गया। उसने देखा कि घोडे़ के पैर बालों में उलझे हैं।
जब उसने बालों को देखा तो वह मोहित हो गया। वह कल्पना करने लगा कि जिस स्त्री के केश इतने सुनहरे और लंबे हों वह स्त्री कितनी सुंदर होगी। फिर उसके मन में मिलने की इच्छा जागी और वह उसी दिशा में गया, जहां से वह केश प्रवाहित होकर आये थे। अंत में वह उस स्थान पर पहुंच गया, जहां मां जिया रानी स्नान कर रही थी। जब वह वहां पहुंचा तो रानी मां स्नान कर वस्त्र सुखा रही थीं और एक विशाल शिला पर उन्होंने अपना घागरा सुखाने को डाल रखा था। तभी उस दिवान ने रानी मां को अपनी सेना की मदद से घेर लिया और मां जिया के साथ अभद्रता करने लगा। चूंकि उस समय मां स्नान कर रही थीं। इस कारण उनके रक्षक वहां मौजूद नहीं थे, इसलिए मां ने अपनी आत्म रक्षा हेतु वहां उस राजा से युद्ध किया।
राजा कि सेना को तो मां ने पराजित किया किंतु अपनी आन को बचाने के लिये एवं उस स्थान को अपवित्र होने से बचाने के लिये मां ने उस स्थान को त्यागने का निर्णय लिया। वो दुष्ट रदिवान को भ्रमित कर कुछ ही दूरी पर स्थित गुफा में चली गई। तब मां ने महादेव का स्मरण किया और उस स्थान से अलोप हो गईं और सीधा अपनी राजधानी बैराठ अपने इष्ट दरबार में प्रकट हुईं। आज भी रानीबाग में मां जिया रानी की गुफा में दो छिद्र हैं।
गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊनी घाघरे के समान है। उस शिला पर रंग-बिरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई, परंतु उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है। कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है।
कुमाऊं के कत्यूरी वंश के लोग राजमाता कुलदेवी जिया रानी पर बहुत गर्व करते हैं। उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष 13 जनवरी मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है। जय हों महान राजमाता की प्रतीक, महादेव भक्त और कुलदेवी कत्यूरी सूर्य वंश की राजमाता जिया रानी। शत-शत नमन। जय कत्यूरी सूर्य वंश राजपूताना/ लेखक – कुंवर यश सिंह बंगारी